Friday, December 26, 2014

बाल उपन्यास ‘जंगल का लोकतंत्र’ का तंत्र-जाल

प्रख्यात साहित्यकार कमलेश भट्ट कमल प्रणीत बाल उपन्यास ‘जंगल का लोकतंत्र’ का अवगाहन किया। उपन्यासकार ने बाल व किशोर हेतु इस उपन्यास को चौसठ पृष्ठों के कलेवर में गठित किया है। इसका कथानक इन्सानी महत्वाकांक्षाओं के आक्रमण से बचे हुए एक सुदूरवर्ती प्रान्त के जंगल में पीढ़ी दर पीढ़ी चल रहे शेर के राज से प्रारंभ होता है जहाँ जंगल में इन्सानी लोकतंत्र की भांति प्रक्रिया अपनायी जाती है और शाकाहारी जानवरों के बहुसंख्यक होने से और उनमें हिरन प्रजाति को संख्या के आधार पर अधिक होने से एक बूढ़े हिरन के मतानुसार उसके बेटे को राजा चुना जाता है। शाकाहारी हिरन राजा जंगल में हिंसा को अवैध घोषित करता है किन्तु दाँव-पेंच अपनाकर एक मांसाहारी भेड़िया घुसपैठ बनाकर सुरक्षामंत्री पद हथिया लेता है। धीरे-धीरे हिंसा के प्रति निषेधाज्ञा का उल्लंघन होने लगता है। राजा के पास शिकायत आने पर जांच कमेटी गठित की जाती है जिसमें मांसाहारी मंत्री द्वारा उलट-फेर करवाकर निर्णय प्रभावित कराया जाता है। हिंसा पर हिंसा चोरी छिपे होने लगती है। जांच पर जांच कमेटियाँ बनती रहती हैं और सही निर्णय में बाधा पड़ती जाती है। भेड़िए की धूर्तता बढ़ती जाती है। हिरन राजा के आदेश से अल्पसंख्या वाले जानवर एक-एक करके भगाये जाते हैं किन्तु भेड़िया की बारी आने पर वह हिरन राजा व उसके परिवार का शिकार कर स्वयं राजा बन जाता है। अन्ततोगत्वा मृतक शेर राजा के एक वफादार कुत्ते के सहयोग से उसके बच्चे को वापस लाकर जानवरों में नव संगठन द्वारा धूर्त भेड़िये को गद्दी से हटाया जाता है और युवराज शेर को राजा नियुक्त किया जाता है। फलतः जंगल में एक नये लोकतंत्र की दस्तक होती है जहाँ इन्सानों के लोकतंत्र की सजा भुगत रहे जंगल को कुछ राहत मिलती है। उपन्यास के थीम-प्लाट पर साहित्यिक दृष्टि डालने से विदित होता है कि इसमें कार्य-कारण श्रृंखला पर आधारित काल्पनिक प्राकथन है जिसमें वन्य जीवन की कथा-व्यथा एक नये प्रसंग से जोड़कर व्यक्त की गई है। जंगल का राजा तो शेर ही होता है। वहाँ अन्य प्रजाति वह भी निर्बल शाकाहारी का राजा बन जाना अप्राकृतिक लगता है। मांसाहारी पशु को शाकाहारी बनाया जाना भी अस्वाभाविक है। मानवी प्रवेश को जंगली प्रवेश पर थोपना भी स्वाभाविक नहीं है क्योंकि दोनों का व्यवहार-जगत बिल्कुल भिन्न है। चूँकि कथित उपन्यास बाल जगत के लिए है इसलिए इसमें बालमन रमाने और रोचक बनाने के लिए वस्तुविन्यास में प्रचुर सामग्री है। वर्णित घटनाओं में कौतूहल के साथ-साथ सुसंगठित चित्रात्मकता विद्यमान है। वन्य पशु अपने स्वभावानुकूल चरित्र की भूमिका निभाते हैं। वस्तु के उपसंहार में भी लेखक का कौशल फलागम को सुखांत बनाने में उभर कर सामने आया है। कथानक के संवादों में सजीवता है। उनमें रोचकता, रंजकता और स्वाभाविकता का आधान है। लगभग सभी संवाद कथानक के स्वाभाविक विकास में सहायक सिद्ध हुए हैं। वे पात्रों के अन्तः-बाह्य चरित्रों का सम्यक उद्घाटन भी करते हैं। कथानक में प्रसंगानुसार मानवीय लोकतंत्र में व्याप्त मानव कुकृतियों पर अच्छा-खासा कटाक्ष भी है। उसमें जल-प्रदूषण, पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, डकैतों, लुटेरों, माफियायों के कुकृत्य आदि पर भी प्रहार है। जांच कमेटी बनाकर न्याय में विलम्ब व हेर-फेर की बात कह कर ऐसी प्रणाली के प्रति आक्रोश के साथ व्यवस्था में व्याप्त अन्य दुर्गुणों की ओर संकेत और फिर नये लोकतंत्र की दस्तक का युगबोध कथानक को सुखांत की ओर अग्रसर करता है। उपन्यास की भाषा सरल, सरस, खड़़ी बोली हिन्दी है। यत्र-तत्र संवादों के माध्यम से पात्रों के अनुकूल चटपटी व रोचक शब्दावली ने कथ्य को लालित्यवर्धक बना दिया है। कथानक की भाषा पात्रानुकूल और विषयानुकूल है। कथ्य में समय-खण्ड का ध्यान रखा गया है। समस्याओं एवं प्रश्नों पर टिका कथ्य समाधान का पुट लिए है। इस रोचक प्रणयन के लिए उपन्यासकार कमलेश भट्ट ‘कमल’ वधायी के पात्र हैं।

समीक्षक-

 -रामदेव लाल ‘विभोर’ 
महामंत्री
काव्य कला संगम, लखनऊ
565 क/141, गिरजा-सदन
अमरूदहीबाग, आलमबाग
लखनऊ-226005
मोबाइल - 9335751188

Sunday, October 09, 2011

जो सचमुच में बड़े हैं








श्री कमलेश भट्ट कमल यों तो पीसीएस अधिकारी हैं। वाणिज्य कर में ज्वाइंट कमिश्नर हैं। पर वह एक स्थापित साहित्यकार हैं। मूलत: गज़लकार हैं। यह वह खुद भी मानते हैं लेकिन उन्होंने कहानी, साक्षात्कार, यात्रा वृतांत और बाल साहित्य भी लिखा है। हाइकु का तो उन्होंने आन्दोलन ही छेड़ रखा है। कमलेश जी की साहित्यिक यात्रा 1975 से शुरू हुई पर गज़ल यात्रा 1990 से। लेकिन जिस तरह उनका साहित्य की ओर रुझान और साहित्यकारों से सम्पर्क रहा है, उससे लगता है कि वह ज़मीं पर साहित्यकार बनने के लिए ही आये। अधिकारी तो बन गये या बनना पड़ा। साहित्यकारों को भी अब कुछ काम अनिवार्य रूप सें करने पड़ते हैं। जैसे शादी, बच्चों की परवरिश, फिर उनकी शादी..। गालिब, मीर, जोश, फैज के जमाने में होते तो बस साहित्यकार होते। उनकी पत्नी भी उस दौर में होतीं तो साहित्यिक रचना को फालतू मानतीं। अब पत्रिकाओं में पति की रचनाएं, इंटरव्यू छपे, रेडियो टीवी पर नाम आया, कवि सम्मेलनों में दाद मिली, पुरस्कार-सम्मान मिले तो पत्नी को लगा कि वाकई यह कोई बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। उन्हें मिसेज भट्ट होने पर फख्र महसूस हुआ। पति की इज्जत और शोहरत उनको अपनी इज्जत और शोहरत लगी। असली भारतीय नारी को इससे ज्यादा और चाहिए भी क्या। भट्ट जी का जन्म 13 फरवरी, 1959 को सुल्तानपुर के जफरपुर गांव में हुआ। गांव की तहसील कादीपुर के पांच कि०मी० के दायरे में कई महत्वपूर्ण साहित्यकार रहते थे। जैसे पूर्व में कहानीकार संजीव, पश्चिम में मानबहादुर सिंह, उत्तर में कवि त्रिलोचन शास्त्री, दक्षिण में रामनरेश त्रिपाठी। इनसे सम्पर्क न भी रहे पर जरासीम तो हवा में उड़ते ही हैं। वो साहित्य के हों तो और ‘खतरनाक’ होते हैं। 12वीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए भट्ट जी लखनऊ आ गये। साहित्य के कीटाणुओं से रोग पनपने लगा था। यहां उसे गंभीर होने का पूरा अवसर मिला। रवीन्द्रालय और हिन्दी संस्थान में आये दिन कार्यक्रम होते थे। कई अखबार भी लखनऊ से छपते थे और साहित्य भी खूब छापते थे। क्योंकि उनके सम्पादक खुद साहित्यकार होते थे। कई साहित्यकार उनमें विभिन्न पदों पर नौकरी भी करते थे। लखनऊ में भट्ट जी को अनेक वरिष्ठ साहित्यकारों का स्नेह प्राप्त हुआ। इसमें अमृतलाल नागर, शिवानी, शिवसिंह सरोज, रमाकांत श्रीवास्तव, विनोद पांडेय, चंद्रोदय दीक्षित के नाम उल्लेखनीय हैं। 1979 में लखनऊ विविद्यालय से गणित में एमएससी करने के बाद पीसीएस किया। पहली पोस्टिंग रायबरेली में हुई। वहां शम्भु दयाल सिंह सुधाकर, अम्बर बहराइची, मधुकर खरे, शम्भुनाथ जैसे साहित्यकारों का साथ रहा। इसके बाद उनका स्थानांतरण आगरा, मथुरा, अलीगढ़, सहारनपुर, गाजियाबाद हुआ। कई शहरों में वह दो बार रहे। इस बीच उनको सोम ठाकुर, रामेन्द्र मोहन त्रिपाठी, अशोक रावत, शशि तिवारी, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, डा० जगदीश व्योम, डा० दिनेश पाठक शशि, उपेन्द्र, शहरयार, नीरज, प्रो0 कुंवरपाल, डा. नमिता सिंह, डा. वेद प्रकाश अमिताभ, प्रेम कुमार, सुरेन्द्र सिंघल, शलभ, आरपी शुक्ला आदि का साथ मिला। गाजियाबाद में उनकी पोस्टिंग दो बार हुई। गाजियाबाद को हम दिल्ली तक मानते हैं और दिल्ली को गाजियाबाद तक। इस बीच वह चित्रा मुद्गल, सेरा यात्री, प्रभाकर श्रोत्रीय, हरिकृष्ण देवसरे, कमल किशोर गोयनका, लक्ष्मी शंकर बाजपेयी, देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’, जैसे अनेक साहित्कारों के सान्निध्य में रहे। साहित्यकारों से मेल-मिलाप और फिराक, उपेन्द्रनाथ अश्क व महादेवी जैसे अनेक साहित्यकारों का इंटरव्यू.. यानि साहित्य की इतनी हैवी डोज के बाद वह लेखन के एडिक्ट हो गये और अच्छा लिखना उनकी मजबूरी बन गया। अब से पहले 1990 में भी वह कानपुर में रहे। तब यहां गज़ल के उस्ताद शायर पं. कृष्णानंद चौबे से उन्होंने गज़ल के कुछ गुर सीखे। और बस गज़ल ही कहने लगे। इस बारे में उनका कहना है- ‘ एक बार जब गज़लों से जुड़ा और इस विधा की ताकत को समझ गया तो कविता की दूसरी विधाएं फीकी-सी लगने लगीं और कहानियों का लिखना प्राय: बंद ही हो गया। गज़ल के सात जुड़ाव ने मुझे एक ऐसे क्षितिज पर पहुंचा दिया था जहां अभिव्यक्ति की असीम संभावनाएं थीं। इन संभावनाओं को मैं कथ्य, शिल्प और भाषा जैसे कई स्तरों पर देख पाता हूं। मैं मानता रहा हूं कि हिंदी गज़ल में नई कविता का कथ्य, नवगीत की नव्यता तथा गीत की छांदसिकता- तीनों एक साथ मौजूद हैं। गज़ल का यथार्थवादी और समाजिक रुझान इस विधा को देश के आम आदमी की ज़बान बनने की सामथ्र्य देता है।’ उनके कुछ शेर मुलाहिजा हों-

वो खुद ही जान जाते हैं बुलन्दी आसमानों की। परिन्दों को नहीं तालीम दी जाती उड़ानों की।।

विरोध अपना जताने का तरीका पेड़ का भी है,
जहां से शाख काटी थी वहीं सेठ्ठ कोपलें निकलीं।

उधर सब सन्त कहते हैं कि धन-दौलत तो मिट्टी है, इधर हमने लगा रक्खा है अपना धन ज़मीनों में।

बिछे हों लाख कांटें, पर चुभन बिल्कुल नहीं आती। उम्मीदों का सफ़र हो तो थकन बिल्कुल नहीं आती।।

नसीबों पर नहीं चलते नज़ीरों पर नहीं चलते।
जो सचमुच में बड़े हैं वो लकीरों पर नहीं चलते।।

नहीं अब तक थके जो तुम तो कैसे हम ही थक जाएं,
तुम्हारे जु़ल्म भी जारी हमारी जंग भी जारी।

अलग यह बात है वह आज या फिर कल निकलता है।
बहुत मुश्किल सवालों का भी लेकिन हल निकलता है।।

निकलती है बहुत मिट्टी, निकलती है बहुत बालू, ज़मीं से तब कहीं जा करके मीठा जल निकलता है।

कमलेश जी के दो कहानी संग्रह ‘शंख सीपी रेत पानी’, ‘मैं नदी की सोचता हूं’ प्रकाशित हुए हैं। पहले गज़ल संग्रह पर उप्र हिन्दी साहित्य संस्थान ने निराला पुरस्कार प्रदान किया है। संस्थान ने उनके कहानी संग्रह ‘नखलिस्तान’ को सर्जना पुरस्कार व बाल कहानी संग्रह ‘मंगल टीका’ को सूर नामित पुरस्कार से नवाजा है। इसके अलावा उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें किताब घर प्रकाशन समेत अन्य संस्थाओं ने सम्मानित किया है। उपर्युक्त पुस्तकों के अलावा भट्ट जी के तीन यात्रा वृतांत, दो साक्षात्कार संग्रह, दो कहानी, एक बाल कविता संग्रह व एक बाल उपन्यास भी प्रकाशित हो चुका है। उनका एक हाइकू कविताओं का संग्रह भी छप चुका है। एक लघु कथा संग्रह व चार हाइकू संग्रह उन्होंने सम्पादित किये हैं। वह दो साहित्यिक संस्थाओं के सक्रिय पदाधिकारी भी हैं। 1980 में कमलेश जी का विवाह हुआ। ससुर डर रहे थे कि साहित्यकार का क्या भरोसा। पर वह भरोसेमंद साबित हुए। उनके लिए भी, साहित्य के लिए भी। आज वह 14 पुस्तकों, दो बेटियों और एक बेटे के पिता हैं। बेटे बेटी का साहित्य की ओर रुझान नहीं है पर बड़ी बेटी को संगीत का शौक है। उसने पिताजी की कई गज़लों की धुन बनायी है। उन्हें मंच पर गाया है। पुस्तकों ने भट्ट जी को साहित्यिक मंच पर जमाया है।

समन्दर में उतर जाते हैं खुद ही तैरने वाले।
किनारे पर भी डरते हैं तमाशा देखने वाले।।

चले थे गांव से लेकर कई चाहत कई सपने,
कई फिक्रें लिए लौटे शहर से लौटने वाले।

बुराई सोचना है काम, काले दिल के लोगों का,
भलाई सोचते ही हैं भलाई सोचने वाले।

यकीनन झूठ की बस्ती यहां आबाद है लेकिन,
बहुत से लोग जिन्दा है अभी सच बोलने वाले।

दूध को बस दूध ही पानी को पानी लिख सके।
सिर्फ कुछ ही वक्त की असली कहानी लिख सके।।

उम्र लिख देती है चेहरों पर बुढ़ापा एक दिन,
कोई-कोई ही बुढ़ापे में जवानी लिख सके।

उसको ही हक है कि सुबहों से करे कोई सवाल,
जो किसी के नाम खुद शामें सुहानी लिख सके।

मौत तो कोई भी लिख देगा किसी के भाग्य में,
बात तो तब है कि कोई जिंदगानी लिख सके।

सहारनपुर में पूर्णिमा वर्मन

कविताएँ सुने

पुस्तकें लोकार्पित

सुप्रसिद्ध गजलकार और हाइकुकार कमलेश भट्ट कमल ने अपने जीवन के 50 वर्ष 13 फरवरी 2009 को पूरे किए। कमलेश जी की पचासवीं वर्षगाँठ पर उनकी दो महत्वपूर्ण पुस्तकें एक साथ लोकार्पित हुईं। गाजियाबाद स्थित गान्धर्व संगीत महाविद्यालय के मुक्ताकाशीय मंच पर 13फरवरी 2009को गीताभ तथा हाइकु दर्पण के संयुक्त तत्वावधान में लोकार्पण समारोह में मै नदी की सोचता हूँ (गजल संग्रह) तथा अमलतास ( हाइकु संग्रह ) का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार गिरिराजकिशोर ने अपने संबोधन में कहा कि अब हमें ये बेवकूफी छोड देनी चाहिए कि गजल लिखें या नहीं, यदि हिन्दी में गजल लिख सकते हैं तो जरूर लिखें क्योंकि इसमें संवेदना को तीव्रता के साथ अभिव्यक्ति करने की अपूर्व संभावनाएँ हैं। उन्होंने कहा कि हाइकु की तीन पंक्तियों में यथार्थ को व्यक्त कर देना बहुत कठिन कार्य है। अज्ञेय ने कभी कहा था कि भारतीय, जापानियों से बेहतर हाइकु लिख सकते हैं और भट्ट जी ने इसे प्रमाणित करके दिखा दिया। कार्क्रम के अध्यक्ष सुप्रसिद्ध कहानीकार से.रा.यात्री ने कहा कि कमलेश जी सच्चे अर्थों में एक प्रसन्न व्यक्ति हैं उनकी काव्य सम्मत चिन्ताएँ जन जीवन से गहराई के साथ जुडी हुई हैं। डा० मधुभारती ने कमलेश भट्ट की गजलों में संप्रेषणीयता की अद्भुत क्षमता का उल्लेख किया। सुप्रसिद्ध कवि डा० कुँअर बेचैन ने कमलेश जी की गजलों को पूरे समाज से जुडा हुआ बताया। डा० अमरनाथ अमर ने कमलेश जी की रचनाओं को स्व से निकलकर सर्व तक जाती मानवीय संवेदनाओं का संकलन बताया। उन्होंने कहा कि उनकी संवेदना नदी से निकलकर मनुष्य तक पहुँचती हैं। ये भी कहा कि उनकी गजलों में बुलंदी पर जाने की इच्छाशक्ति तथा समाज का संघर्ष, चिन्तन और उसकी चिन्ता भी व्यक्त होती है। सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार कृष्ण शलभ ने कमलेश भट्ट कमल के व्यक्तित्व को व्यष्टि से समष्टि की ओर जाता हुआ बताया। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध चित्रकार डा० लाल रत्नाकर, वरिष्ट पत्रकार डा० कुलदीप तलवार, साहित्यकार बी.एल.गौड, डा० सुरेन्द्र सिंघल, डा० सरिता शर्मा, डा० अंजली देवधर, प्रकाशक हरिश्चन्द्र शर्मा आदि ने कमलेश जी के व्यक्तित्व कृतित्व तथा उनकी रचनाधर्मिता को केन्द्र में रखते हुए विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में ओमप्रकाश यती, डा० अंजू सुमन, अंजू जैन, अतुल जैन, आर.पी.कौशल, एस.एन.भट्ट, अनिल कुमार शर्मा, कालीचरन प्रेमी, ओमप्रकाश कश्यप, कुसुम भट्ट, अलका यादव, विशाख, आस्था, प्रत्यूष आदि शामिल थे। मंचस्थ अतिथियों तथा प्रकाशक हरिश्चन्द्र शर्मा को शाल उढ़ाकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ अनुराधा भट्ट और जया बनर्जी द्वारा सरस्वती वंदना एवं गजल प्रस्तुति के साथ हुआ। कार्यक्रम का संचालन डा० जगदीश व्योम तथा वेदप्रकाश शर्मा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन आजकल पत्रिका के संपादक डा० योगेन्द्र दत्त शर्मा ने किया।












अमलतास का लोकार्पण

सुप्रसिद्ध गजलकार और हाइकुकार कमलेश भट्ट कमल ने अपने जीवन के 50 वर्ष 13 फरवरी 2009 को पूरे किए। कमलेश जी की पचासवीं वर्षगाँठ पर उनकी दो महत्वपूर्ण पुस्तकें एक साथ लोकार्पित हुईं। गाजियाबाद स्थित गान्धर्व संगीत महाविद्यालय के मुक्ताकाशीय मंच पर 13फरवरी 2009को गीताभ तथा हाइकु दर्पण के संयुक्त तत्वावधान में लोकार्पण समारोह में मै नदी की सोचता हूँ गजल संग्रह तथा अमलतास का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार गिरिराजकिशोर ने अपने संबोधन में कहा कि अब हमें ये बेवकूफी छोड देनी चाहिए कि गजल लिखें या नहीं, यदि हिन्दी में गजल लिख सकते हैं तो जरूर लिखें क्योंकि इसमें संवेदना को तीव्रता के साथ अभिव्यक्ति करने की अपूर्व संभावनाएँ हैं। उन्होंने कहा कि हाइकु की तीन पंक्तियों में यथार्थ को व्यक्त कर देना बहुत कठिन कार्य है। अज्ञेय ने कभी कहा था कि भारतीय, जापानियों से बेहतर हाइकु लिख सकते हैं और भट्ट जी ने इसे प्रमाणित करके दिखा दिया। कार्क्रम के अध्यक्ष सुप्रसिद्ध कहानीकार से.रा.यात्री ने कहा कि कमलेश जी सच्चे अर्थों में एक प्रसन्न व्यक्ति हैं उनकी काव्य सम्मत चिन्ताएँ जन जीवन से गहराई के साथ जुडी हुई हैं। डा० मधुभारती ने कमलेश भट्ट की गजलों में संप्रेषणीयता की अद्भुत क्षमता का उल्लेख किया। सुप्रसिद्ध कवि डा० कुँअर बेचैन ने कमलेश जी की गजलों को पूरे समाज से जुडा हुआ बताया। डा० अमरनाथ अमर ने कमलेश जी की रचनाओं को स्व से निकलकर सर्व तक जाती मानवीय संवेदनाओं का संकलन बताया। उन्होंने कहा कि उनकी संवेदना नदी से निकलकर मनुष्य तक पहुँचती हैं। ये भी कहा कि उनकी गजलों में बुलंदी पर जाने की इच्छाशक्ति तथा समाज का संघर्ष, चिन्तन और उसकी चिन्ता भी व्यक्त होती है। सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार कृष्ण शलभ ने कमलेश भट्ट कमल के व्यक्तित्व को व्यष्टि से समष्टि की ओर जाता हुआ बताया। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध चित्रकार डा० लाल रत्नाकर, वरिष्ट पत्रकार डा० कुलदीप तलवार, साहित्यकार बी.एल.गौड, डा० सुरेन्द्र सिंघल, डा० सरिता शर्मा, डा० अंजली देवधर, प्रकाशक हरिश्चन्द्र शर्मा आदि ने कमलेश जी के व्यक्तित्व कृतित्व तथा उनकी रचनाधर्मिता को केन्द्र में रखते हुए विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में ओमप्रकाश यती, डा० अंजू सुमन, अंजू जैन, अतुल जैन, आर.पी.कौशल, एस.एन.भट्ट, अनिल कुमार शर्मा, कालीचरन प्रेमी, ओमप्रकाश कश्यप, कुसुम भट्ट, अलका यादव, विशाख, आस्था, प्रत्यूष आदि शामिल थे। मंचस्थ अतिथियों तथा प्रकाशक हरिश्चन्द्र शर्मा को शाल उढ़ाकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ अनुराधा भट्ट और जया बनर्जी द्वारा सरस्वती वंदना एवं गजल प्रस्तुति के साथ हुआ। कार्यक्रम का संचालन डा० जगदीश व्योम तथा वेदप्रकाश शर्मा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन आजकल पत्रिका के संपादक डा० योगेन्द्र दत्त शर्मा ने किया।











सांस्कृतिक समारोह करनाल

* सांस्कृतिक कार्यक्रम करनाल

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का पुरस्कार

कमलेश भट्ट कमल के ग़ज़ल संग्रह शंख सीपी रेत पानी को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा निराला पुरस्कार रु० २०००० का पुरस्कार प्रदान किया गया है। कमलेश जी को हिन्दी साहित्य टीम की ओर से हार्दिक बधाई।–संपादक हिन्दी साहित्य टीम



चिट्ठी आई है (कहानी)gg

हाइकु कानन यहाँ देखें gg

सरल चेतना को यहाँ देखें gg

बालफुलबारी को यहाँ देखें gg

Thursday, November 03, 2005

परिचय











कमलेशभट्ट कमल
जन्म- 13 फरवरी 1959 ई॰ को सुल्तानपुर(उ॰प्र॰)की कादीपुर तहसील के ज़फरपुर नामक गाँव में।
शिक्षा- एम॰एस-सी॰ (साँख्यिकी)
सृजन- ग़ज़ल, कहानी, हाइकु, साक्षात्कार, निबन्ध, समीक्षा एवं बाल-साहित्य आदि विधाओं में।
कृतियाँ-
* त्रिवेणी एक्सप्रेस (कहानी संग्रह)
* चिट्ठी आई है (कहानी संग्रह)
* सह्याद्रि का संगीत (यात्रा वृतान्त)
* साक्षात्कार (लघुकथा पर डॉ॰ कमल किशोर गोयनका से बातचीत)
* मंगल टीका (बाल कहानियाँ)
* तुर्रम बाल उपन्यास
* शंख सीपी रेत पानी (ग़ज़ल संग्रह)
* संस्कृति के पड़ाव
* अमलतास (हाइकु संग्रह)
(उ॰प्र॰ हिन्दी संस्थान द्वारा मंगल टीका एवं शंख सीपी रेत पानी पर 20-20 हजार रुपए का पुरस्कार)
संपादन-
* शब्द साक्षी (लघु कथा संकलन)
* हाइकु - 1989 (हाइकु संकलन)
* हाइकु - 1999 (हाइकु संकलन)
* हाइकु - 2009 (हाइकु संकलन)

सम्प्रति-
उ॰प्र॰ के वाणिज्य कर विभाग में ज्वाइंट कमिश्नर

सम्पर्क-

सी-631, गौड़ होम्स, गोविन्दपुरम, हापुड़ रोड, गाज़ियाबाद- 201002 (उ०प्र०), भारत

दूरभाष- 0120-2765044
मोबा॰- 09968296694
ई-मेल- kmlshbhatt@yahoo.co.in
kamalesh.bhatt@gmail.com


जालघर-
http://www.kamleshbhatt-kamal.blogspot.com/
http://www.gazalkamal.blogspot.com/

विविध लिंक


* तुर्रम बाल उपन्यास की समीक्षा

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फोटो गैलरी -



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